ना जाने कैसा यह भगदड़ है

ना जाने कैसा यह भगदड़ है,
किसी को गिरा कर बढ़ने का न जाने कैसा यह शौक है |

अगर किसी को उभार कर  उभरे तुम ,
तब तो यह तुम्हारी कला की सच्ची कलाकारी हैं l
पर ना जाने कैसा यह भगदड़  है |

-स्पृहा टण्डन

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